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Showing posts from February, 2022

हे अत्यंत भावुक मन !

हे अत्यंत भावुक मन , तू संभल  जा  | क्यूँ समझता है तू , अपने ही भाॅति हर किसी को शीघ्रता  गाॅव, शहर ,गली -गली भरी है निर्दयता  हे भावुक मन !तुझे मिली है हर जगह असफलता  | हे अत्यंत भावुक मन  ! तू संभल जा  || देखकर अपने चारों ओर इतनी कठोरता हर किसी के मन में भरी है निष्ठुरता  ,   फिर भी क्यूँ बनी है , तेरे अंदर ये व्याकुलता  | हे अत्यंत भावुक मन ! तू संभल जा || क्या तुम बदल सकते हो सबकी मनोदशा ?  नहीं, तो फिर क्यूँ देते हो "सोनी" को इतनी कठोरता  | हेअत्यंत भावुक मन !अब तू बदल जा  | हे अत्यंत भावुक मन  ! तू संभल जा  ||