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हे अत्यंत भावुक मन !

हे अत्यंत भावुक मन , तू संभल  जा  |

क्यूँ समझता है तू , अपने ही भाॅति हर किसी को शीघ्रता 
गाॅव, शहर ,गली -गली भरी है निर्दयता 
हे भावुक मन !तुझे मिली है हर जगह असफलता  |

हे अत्यंत भावुक मन  ! तू संभल जा  ||

देखकर अपने चारों ओर इतनी कठोरता
हर किसी के मन में भरी है निष्ठुरता  ,  
फिर भी क्यूँ बनी है , तेरे अंदर ये व्याकुलता  |

हे अत्यंत भावुक मन ! तू संभल जा ||

क्या तुम बदल सकते हो सबकी मनोदशा ? 
नहीं, तो फिर क्यूँ देते हो "सोनी" को इतनी कठोरता  |
हेअत्यंत भावुक मन !अब तू बदल जा  |

हे अत्यंत भावुक मन  ! तू संभल जा  ||

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