स्कूल बंद, ऑफिस बंद, बंद सारी होटलें,
हो गई मॉलें भी बंद, बंद सारे हौसले |
पर ना हुआ बंद गृहिणियों के काम -काज,
वो तो फंस गई बेचारी लॉकडाउन को मानकर|
कभी शिक्षक, कभी डॉक्टर, कभी ममतामयी बनी,
रसोइया बनकर सबकी फरमाइश पूरी करती गयी |
पहले समोसा, फिर जलेबी, रसगुल्ले भी चाहिए,
जैसा बनता है बनाओ, नहीं तो यूट्यूब है किसलिए |
चटपटा तो खुद भी चाहिए पर,अपनी हम क्यूँ कहे,
बोलो बेटा क्या खाओगे ताकि, हम पूरी करें |
पति की फरमाइश कुछ और खिलाओ हे प्रिये!
मुँह फुलाकर बैठ गई, आखिर हम भी तो थक गए|
इतने में गोलगप्पे मेज पर तैयार था,
खट्टी-मिठी चटनियों से था मुझे ललचा रहा,
"सोनी "चौकन्ना रह गई गोलगप्पे देखकर ,
खुश हुईं मन-ही-मन , हाव-भाव देखकर |
इतना अच्छा हो बनाते, अब तक मालूम न था
इस रसोइये का भेद कोरोना काल में है खुला|
मन प्रफुल्लित हुआ मेरे श्रीमान् का,
कभी मौका ही न मिला, मुझे इन काम का |
झट से बोली हे जनाब सनडे है किसलिए,
अपने हाथों से बनाओ , प्यार करते इसलिए|
सनडे है इसलिए , सनडे है इसलिए ||
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