कोरोना ने सब का हाल -बेहाल कर रखा ,
बेचारी औरतों ने अपना श्रृंगार ही बेकार कर रखा |
प्रतिदिन घर में कितना सजे-कितना सजे ,
ना कहीं जाना है बाहर , आखिर खुद को क्यूँ रचे |
थीं विवश मैं भी सजने को , कोरोना तेरा सत्यानाश हो
तूने ऊधम है मचाया औरतों के श्रृंगार पर |
थी पुरानी कुछ पडी़ श्रृंगार के सामान भी ,
सोची सज-धज के सोशल मीडिया के सखियों से मिलूँ |
चूड़ी, बिन्दी, नेलपाॅलिश, मेहंदी भी रच गई
बालों में सुंदर गजरा ऑखों में काजल है बस गई |
पैरों में पायल -बिछिया चमकती साड़ी ने दिखाया जलवा,
लाल सिंदूर लगाकर हाय रे! कितनी में जॅच गई |
परफ्यूम मारकर मैं सुगंधित हो गई ,
जब आई बारी होठों की लिपिस्टिक हाथों में थम गई |
क्योंकि मास्क हटाने से "सोनी "डर गई ,
हाय रे ! मेरी श्रृंगार अधूरी रह गई ,
मेरी श्रृंगार अधूरी रह गई ||
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