संक्षिप्त नहीं हो पाता, विस्तार कर देती हूंँ | कितना भी कोशिश करूं, मैं बातों को तिल से ताड़ कर देती हूंँ | ना संक्षिप्त कहना आता है ,ना सुनना आता है कुछ ऐसे भी हैं , जिन्हें इनकार कर देती हूंँ | हरदम बूढ़े -बुजुर्गों का जय - जयकार कर लेती हूंँ | बात ही होते हैं कुछ ऐसे ,जो तिल के लायक नहीं होते उन्हीं बातों को अकसर तिल से ताड़ कर देती हूंँ | ऐसे ही लोगों का परित्याग कर देती हूँ | बात करने का यह तरीका भी , कितना खूब भाता है इसी तरह से , मैं विचार कर लेती हूँ | ना जाने , कितने को दूर से पास कर लेती हूंँ | अकसर खुलकर नहीं बोलने से , बहुत से रिश्ते टूट से जाते हैं किसी का हमदर्द बनने के लिए , मैं विस्तार से सुनती हूंँ | किसी का गम बाॅटने के लिए , मैं तैयार ही रहती हूंँ | आदत है विस्तार तो , विस्तार कर लेती हूंँ अकसर मैं अपने कामों को , दिन से रात कर लेती हूंँ | कभी-कभी तो खुद से तकरार कर लेती हूंँ | कहना होता है थोड़ा , पर्याप्त कर लेती हूंँ ना जाने क्यों , दूसरे का परवाह कर लेती हूंँ | कभ...
PLEASE READ MY POEMS
Comments
Post a Comment