मैं कौन हूँ, मैं कहाँ से आयी हूँ?
मैं क्या चाहती हूँ, मैं ही क्यों हूँ ?
आखिर मैं ही क्यों हूँ?
इन सारे प्रश्नों से जब इंसान उलझ-सा जाता है |
होती है खुद की फिकर उसे,खुद को समझना चाहता है|
इन प्रश्नों के हल ढूँढने, वो मारा-मारा फिरता है|
समस्या रह जाती हैं यूँ ही, गहरी सोच में पड़ता है|
कभी-कभी तो तंग आकर, छोड़ो ना "मैं कौन हूँ?"
क्या फर्क पड़ता है,
ऐसे ही संसार में सब आते हैं-सब जाते हैं |
सब कुछ भूलकर, फिर से सिमट जाता है |
इस रंगीन दुनिया में, फिर से रम जाता है |
होती फिर से दस्तक -"मैं कौन हूँ ?"
अथक परिश्रम के साथ फिर से जुट जाता है |
खुद में एक छवि पाकर वह मंद-मंद मुसकाता है
सकारात्मक सोच के साथ वह खुद को पढ़ पाता है|
"सोनी " आखिर में होती उसकी लगन सफल ,
वह प्रफुल्लित हो जाता है|
इन प्रश्नों के हल ढूँढने से वह ,
अपनी पहचान बनाता है |
Who am I, where did I come from?
What do I want, why am I the one?
Why am I the only one?
When a person gets entangled with all these questions.
It is his own concern that he wants to understand himself.
Finding solutions to these questions, he wanders around.
The problem remains, just because it falls into deep thinking.
Sometimes you get fed up and leave "Who am I?"
How does it matter,
This is how everyone comes into the world - everyone goes.
Forgetting everything, it shrinks again.
In this colorful world, rum is again.
Would knock again - "Who am I?"
Re-joins with tireless hard work.
He smiles dimly after getting an image of himself
With positive thinking he is able to read himself.
"Sony" would finally succeed,
He becomes cheerful.
By finding soluti
ons to these questions, he
Builds its identity
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