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बेटी के लिए अच्छे दिन

 


बात उन दिनों की है जब मैं स्कूलों में पढ़ा करती थी  , 

 अकसर बेटियाँ  हर घरों में दिखा करती थीं  |


माँ - बाप से ज्यादा दूसरों को बोझ लगा करती थी ,

ये बातें अकसर बहुत चुभा  करती थीं  | 


धनवानों की बेटी हो या हो दीनों की  , 

 सोच बस शादियों तक सीमित रहा करती थी |


इक्के - दुक्के ही घर में समझी जाती थी  , 

 कुछ ही भाग्यशाली मानी जाती थी  |


ना मोबाइल का जमाना था  , 

ना हम स्टेटस में पाए जाते थे  |


बेटियाँ आंगन की शोभा कम  , 

पिता की टेंशन ज्यादा मानी जाती थी  |


आज के दौर में बेटी के लिए तो अच्छे दिन आ ही गए हैं  , 

सबके मन में बेटी भा ही गई हैं  |


अब बेटियां आंगन की शोभा के साथ-साथ , 

पिता को भाग्यशाली बनाने लगी है |

"सोनी " के मन में खुशियाँ छाने लगी है  ||


It is about those days when I used to study in schools,


 Often daughters used to show up in every house.




 Mother used to burden others more than her father,


 These things often used to be very piercing.




 Be it the daughter of the rich or the poor,


 Thinking was limited to weddings.




 Aces - Dukes were considered at home,


 Few were considered lucky.




 Neither was the era of mobile,


 Neither were we found in the status.




 Daughters adorn the courtyard,


 Father's tension was considered more.




 In today's time, good days have come for the daughter,


 Everyone has a daughter in their mind.




 Now daughters, along with the beauty of the courtyard,


 Has started making father lucky.


 "Soni" has got happiness in his mind.


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