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हे इंसान ! सुधर जाओ तुम


 है प्रकृति का कैसा कहर  ? 

 प्रलय है चारों पहर  |

 क्या अमीरी - क्या गरीबी ? 

ना कोई ऊँच और नीच  , 

हर तरफ मची है चीख  |

हे इंसान ! संभल जाओ तुम  ||


प्रकृति के अनादर का यह परिणाम , 

अब तुम भुगत रहे हो हे इंसान !

ना कोई सुन रहा है तुम्हारी पुकार  , 

 सब के सब हो गए लाचार  |

हे इंसान  ! सुधर जाओ तुम  ||


प्रकृति से ना करो छेड़ -छाड़  , 

मानवता को ना करो शर्मसार  |

 "सोनी " शीश नवाओ बारंबार  , 

संस्कृति  - सभ्यता से करो प्यार  |

हे इंसान ! बदल जाओ तुम  ||


है कोई तुमसे भी ऊपर ,

बागडोर है जिनके बल पर |

घृणा , दोष को त्यागो तुम  , 

हे इंसान ! अब भी समय है , जग जाओ तुम |

हे इंसान ! सुधर जाओ तुम ||

What kind of havoc is nature?


 Holocaust is around four o'clock.


 What is rich - what is poverty?


 No high and low,


 Screaming everywhere.


 Hey man  Be careful you ||




 This result of disrespect of nature,


 Now you are suffering, man!


 No one is listening to your call,


 All of them became helpless.


 Hey man  Improve you ||




 Do not tamper with nature,


 Do not shame humanity.


 "Sonny" Sheesh Navao repeatedly,


 Culture - love civilization.


 Hey man  Change you ||




 Is anyone above you,


 Those are the reins.


 Abandon the hatred and guilt,


 Hey man  There is still time, awake you.


 Hey man  Improve you ||


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