कड़क ठंडक में , कड़क चाय का मजा
जो ना पिए , वो क्या जाने चाय का नशा |
ये लालची पकौड़े भी , तुम बिन अधूरे लगते है
लाख डालो कोई भी चटनियां , ये तुमसे ही पूरे होते हैं |
सुन ले पकौड़े ,चाय के सामने तुम्हारी औकात फीके है
हम लौट आते उस जगह से , जहां सिर्फ पकौड़े बिकते है |
कहीं-कहीं खूब आग्रह होता , दो-चार पकौड़े खा लो जी
रहा नहीं जाता "सोनी " को साथ में चाय भी दे दो जी |
तुम्हारा भी अपना नशा है , हर घरों में मौजूद तुम
एक बार दिल लगाकर देखो , दारू तक छोड़ दोगे तुम |
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