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वृक्ष लगाओ , बढ़ाओ हाथ

 एसी , कूलर हो गए  लाख  , गर्मी ने सबको किया परास्त | पर्यावरण को मिलकर करो पर्याप्त  , नहीं तो हम सब हो जाएंगे खाक | वृक्ष लगाओ बढ़ाओ हाथ , सब मिलकर आओ एक साथ | भविष्य के साथ ना करो खिलवाड़  , "सोनी " यही विनती करती है बारंबार |

तृप्त होना है जरूरी

 तृप्त होना भी है जरुरी , आज के इस दौर में  लाख कमाओ लाख गवांओ , जिंदगी के इस दौर में | तृप्त हो तो सब कुछ है , अपने-आप में सौभाग्य है  तृप्त  होना है जरुरी  , आज के इस दौर  में  || लाख रिश्ते जोड़ो तुम , समय पर काम एक भी न आते है  आ गए अगर कभी तो एहसान तले दबाते है  | इंसानियत जिंदा हो तो ये इंसानियत  दिखाते है   वरना तृप्त होना है  जरुरी आज के इस दौर में  || लाख गहनेे , लाख  जेवर , लखपती  कहलाते हैं  लाख गाड़ी , लाख बंगलें समृद्ध भी बन जाते हैं |  तृप्त नहीं होकर , वो खाक में मिल जाते हैं  इसलिए " सोनी "तृप्त होना ही जरूरी ,आज के इस दौर में  ||

बचपन , जवानी और बुढ़ापा सब अपने में खास है

 हर उम्र का अपना  नया ही अंदाज है  , बचपन , जवानी और बुढ़ापा सब अपने में खास है | जी लें हर उम्र को , यही "सोनी " की सौगात है बचपन ,जवानी और बुढ़ापा सब अपने में खास है | सुख मिले  या दुःख मिले ,सब अपने कर्मो  का हिसाब है  बचपन ,जवानी और बुढ़ापा सब अपने में खास है | जी  ले उसी उम्र  को , जो मिले भाग्य से  बचपन  ,जवानी और बुढ़ापा सब अपने में खास है |

कुछ ही जीवन शेष बचा है

उठो , जागो और देखो  कहां  सो गयी हो तुम ? कुछ ही जीवन शेष बचा है , कहां खो गई हो तुम ? तोड़ दो सारे जंजीरे  ,  जो रुकावट में हैं तेरे | अपने ऊपर थोड़ा एहसान करके देखो , कितना बदल गई हो तुम | कुछ ही जीवन शेष बचा है...... तन संभालों ,मन संभालों यूं ही किसी और में ना लगाओं | ज़रा ऊपर उठकर देखो , कहां छुप गई हो तुम  ? कुछ ही जीवन शेष बचा है...... छोड़ दो उन रिश्तों को  , जो तुम्हारा मोल ना समझते  | जरा , झांकों अपने दाएं -बाएं कहां रह गई हो तुम  | कुछ ही जीवन शेष बचा है...... कुछ जिओ अपने लिए भी ," सोनी " ऐसे यूं हीं मत जाओ  | अपने हृदय में उतर कर देखो  , सब कुछ  खो दी हो तुम | कुछ ही जीवन शेष बचा है. ....

खुशी , तुम क्यों चली गई

 हे ख़ुशी ! तुम क्यों चली गई , मैंने बनाई है एक लम्बी सूची  खैर , "सोनी " को भी नहीं है तुम्हें ढूंढने में  रूची | अगर ढूंढ भी लूं तुम्हें अगल -बगल कहीं  लेकिन ,तू  है कि कहीं टिकती ही नहीं  || 

कर्म ही प्रधान है

अगर  ना दे भाग्य तुम्हारा साथ  तो  तुम अपने प्रबल करो कर्म  को ,  कर दो इतना विस्तार की   होगी तेरी जय -जयकार | रच दो तुम इतिहास   संभालो अपने होश -हवास ,  खींच दो अपने  हाथ में  कर्म की लकीर को | प्रबल करो कर्म  को  विस्तार करो कर्म  का , मिटा दो भाग्य का  लेखा -जोखा कर्म ही प्रधान है | कर्म  ही प्रधान  है कर्म ही पूजा और कर्म ही महान है |

सबके लिए तुम खास हो

बच्चे -बूढे और सयाने , सब हैं मोबाइल के दीवाने बड़े काम की चीज है , रखना बहुत जरूरी है | किसके  नहीं यह पास है , सबके लिए यह खास है  जीवन तुम  बिन अधूरे , तुम्हारी दया की आस है | तुम्हें रखना ना लोग भूलते , तुम्हारी सम्मान  सब हैं करते  चाहे बटुआ भूल जाएं ,जीवन-साथी  रुठ  जाएं  | सब तेरे  में ही है दाता , सब कुछ  तुममे हैं समाता रेडियो तुम में , टीवी  तुम में ,सारे न्यूज का भंडार  तुम्हीं में  टॉर्च  तुम में ,घड़ी तुम में ,सारे कुकिंग की विधि तुम्हीं में  कैमरा तुम में ,आईना तुम में ,सारे  कान्टैक्ट की लिस्ट तुम्ही में   रिश्ते तुम में ,नाते तुम में लड़का-लड़की की बातें तुम्हीं में  ग्रुप तुम  में  समाज तुम  में  , फेसबुक की किताबें तुम्हीं में | बैंक तुम  में बैलेंस तुम  में ,सारे दुनिया का व्यापार तुम्हीं  में  ज्ञान तुम में विज्ञान तुम में  , "सोनी " का मन भी तुम्हीं में | तुमसे कोई रूठ ना पाएं , तुम्हारी बिना कोई रह ना पाएं  सबके लिए तुम खा...

समय को ना बर्बाद करो

समय चुपचाप चलता है , समय ही सबको  छलता है | समय को ना बर्बाद करो , बस काम की बात करो | किसी के लिए नहीं रूकता है , यूं ही फिसलता  जाता है | लम्बे कदम बढाता हैं , सब कुछ  पीछे छोड़  जाता है | सेकेंड से मिनट , मिनट से घंटा  घंटे  से दिन , दिन से महीना | महीने से वर्ष में तब्दील  हो जता है , सबको चकाचौंध  कर देता है | यह धीरे -धीरे ढलता है , यह जल्दी ही गुजरता है | समय बहुत बलवान  है , "सोनी " समय का तुम खयाल करो  |  

तारीफें चाय की

कड़क  ठंडक में , कड़क  चाय का मजा  जो ना पिए , वो क्या जाने चाय का नशा  |   ये लालची  पकौड़े  भी , तुम बिन अधूरे लगते है  लाख डालो कोई भी  चटनियां , ये तुमसे ही पूरे होते हैं | सुन ले पकौड़े ,चाय के सामने तुम्हारी  औकात फीके है  हम लौट आते उस जगह से , जहां सिर्फ  पकौड़े  बिकते है | कहीं-कहीं   खूब आग्रह  होता  , दो-चार पकौड़े खा लो जी रहा नहीं  जाता  "सोनी " को  साथ में  चाय  भी दे दो  जी | तुम्हारा भी अपना नशा है , हर घरों में मौजूद तुम  एक बार दिल लगाकर  देखो , दारू तक छोड़  दोगे तुम  |

हे अत्यंत भावुक मन !

हे अत्यंत भावुक मन , तू संभल  जा  | क्यूँ समझता है तू , अपने ही भाॅति हर किसी को शीघ्रता  गाॅव, शहर ,गली -गली भरी है निर्दयता  हे भावुक मन !तुझे मिली है हर जगह असफलता  | हे अत्यंत भावुक मन  ! तू संभल जा  || देखकर अपने चारों ओर इतनी कठोरता हर किसी के मन में भरी है निष्ठुरता  ,   फिर भी क्यूँ बनी है , तेरे अंदर ये व्याकुलता  | हे अत्यंत भावुक मन ! तू संभल जा || क्या तुम बदल सकते हो सबकी मनोदशा ?  नहीं, तो फिर क्यूँ देते हो "सोनी" को इतनी कठोरता  | हेअत्यंत भावुक मन !अब तू बदल जा  | हे अत्यंत भावुक मन  ! तू संभल जा  ||

गलती जमाने की है

 गलती तुम्हारी नहीं , गलती जमाने की है क्योंकि सीखना तो खुद से नहीं ,  सिखाता तो जमाना ही है  | अच्छा -बुरा सब भूल गया    हरदम जमाने की बात करता है ,  जमाने से जीना, जमाने पर मरता है  | दिखावे की आग में ,  खुद को क्यों लपेटता है ,  क्यों नहीं "सोनी " वह खुद को झकझोरता है  |

मैं मास्क हूंँ , मैं मास्क हूंँ

 मैं मास्क हूंँ , मैं मास्क हूंँ  | मैं सबके लिए खास  हूंँ || कोरोना ने पहचान दिलाया  सब को मेरी औकात बताया ,  सबके मैं पास हूंँ  | मैं मास्क हूंँ , मैं मास्क हूंँ  || कोरोना से बचाव कराया  सबके चेहरे को एक बनाया ,  किसके नहीं मैं पास हूंँ |  मैं मास्क हूंँ  , मैं मास्क हूंँ  | | कम पैसों में हूंँ मैं आता  फिर भी सबकी जान बचाता ,  सुनो "सोनी " मैं खास हूंँ |  मैं मास्क हूंँ  मैं मास्क हूंँ   ||

औरतों की बातें

ना जाने ये औरतें क्यों  एक -दूसरे पर फिदा होती हैं  ,  फटाफट सारे काम निपटाकर बातों का पिटारा खोल देती है  | कहॉ -कहाॅ से रिश्ते- नाते की बातें  ढूंढ -ढूंढ कर लाती हैं ,  रसोई घर से होते हुए मॉल -शॉपिंग तक जाती है | बॉलीवुड- हॉलीवुड की सैर करते हुए  राजनीति में टांग अडा़ती हैं ,  होती है बेहद खास हर समस्या का समाधान जानती है | कर ले कितनी भी तारीफें  चुगली के बिना नहीं रह पाती हैं  ,  चुगली करना भी जरूरी क्योंकि , खाना हजम नहीं कर पाती है | क्या करे बेचारी  ऊपर वाले को दया तक नहीं आती हैं ,  "सोनी "ऊपर वाले को दया तक नहीं आती है |

जब अंतर्मन में

जब अंतर्मन में ,  देशभक्ति का जुनून पैदा होता है | तब भागते -भागते कहीं ना कहीं ,  वह  फौज में भर्ती होता है | कभी इस बॉर्डर , कभी उस बॉर्डर  गलवान घाटी तक पहुॅचता है  | भारत माँ का रक्षक बनकर , अपने प्राण तक न्योछावर करता है | मिलता उन्हें सम्मान , ना मिलता  फिर भी फिक्र न करता है | कौन अपना कौन पराया ? सबकी मदद वह करता है |  ना है अंदर छल -कपट  , द्वेषरहित वह होता है | भारत माँ का रक्षक बनकर , अपने प्राण तक न्योछावर करता  है | होता है हर शहर एक- सा हीं ,  हर जगह पहचाना लगता है  | जैसे हो अपना हीं शहर-गाॅव ,  ना कहीं बेगाना लगता है | ना कोई त्योहार , ना कोई हड़ताल  "सोनी "उसके नसीब में होता है | अपना वेतन ही पाकर ,  वह खुशी-खुशी से जीता है |

आत्ममंथन

 करो तुम आत्ममंथन  , करो सब आत्ममंथन  संभल जाओगे तुम , जब करोगे  आत्ममंथन |  कहाँ पर तुम सही थे  , कहाँ पर तुम गलत थे  ?  कहाँ पर तुम सही हो , कहाँ पर तुम गलत हो ?  कहाँ पर सही रहोगे , कहाँ पर गलत रहोगे  ?  करो तुम आत्ममंथन , करो सब आत्ममंथन  सफल हो जाओगे तुम , करोगे आत्ममंथन  |  मथना भी जरूरी , बढ़ना है जरूरी  गिरना भी जरूरी , संभलना है जरूरी   | कहाँ पर क्या उचित है, कहाँ पर क्या अनुचित  ?  करो तुम आत्ममंथन , करो सब आत्ममंथन   निखर जाओगी "सोनी "करोगी आत्ममंथन  | Do you introspection, do all introspection  You will be careful when you do introspection.  Where you were right, where you were wrong?  Where are you right, where are you wrong?  Where will you be right, where will you be wrong?  Do you introspection, do all introspection  You will succeed, you will introspect.  Churning is also necessary, it is necessary to grow  Falling is als...

बेटी के लिए अच्छे दिन

  बात उन दिनों की है जब मैं स्कूलों में पढ़ा करती थी  ,   अकसर बेटियाँ  हर घरों में दिखा करती थीं  | माँ - बाप से ज्यादा दूसरों को बोझ लगा करती थी , ये बातें अकसर बहुत चुभा  करती थीं  |  धनवानों की बेटी हो या हो दीनों की  ,   सोच बस शादियों तक सीमित रहा करती थी | इक्के - दुक्के ही घर में समझी जाती थी  ,   कुछ ही भाग्यशाली मानी जाती थी  | ना मोबाइल का जमाना था  ,  ना हम स्टेटस में पाए जाते थे  | बेटियाँ आंगन की शोभा कम  ,  पिता की टेंशन ज्यादा मानी जाती थी  | आज के दौर में बेटी के लिए तो अच्छे दिन आ ही गए हैं  ,  सबके मन में बेटी भा ही गई हैं  | अब बेटियां आंगन की शोभा के साथ-साथ ,  पिता को भाग्यशाली बनाने लगी है | "सोनी " के मन में खुशियाँ छाने लगी है  || It is about those days when I used to study in schools,  Often daughters used to show up in every house.  Mother used to burden others more than her father,  These things often used to be...

हर रोज मातृ दिवस हूँ मनाती

 मैं सिर्फ एक दिन की मातृ दिवस को नहीं मानती क्योंकि,  मैं हर रोज मातृ दिवस हूँ मनाती   | सिर्फ एक दिन का यह त्योहार  मुझे नहीं है भाता क्योंकि ,  हर  रोज जुड़ा है माँ तुम से ही नाता  | भले ही हर रोज मैं व्यक्त नहीं कर पाती  ,  औरों को क्या पता तुम फाड़ कर देखो मेरी छाती  | दिखावे की इस  दुनिया से बहुत दूर हूंँ माँ,  ये कुछ और नहीं तेरा आशीष है माँ  | क्या लिखूँ तेरे बारे में "सोनी " की ऑखें भर आती है ,  मेरी उम्र भी तुझे लग जाए क्योंकि , तुम से ही मैं हूँ माँ  | I do not consider Mother's Day just one day because,  I celebrate Mother's Day everyday.  I do not like this one day festival because,  Mother is connected to you everyday.  Even though I cannot express everyday,  What do others know, you tear my chest.  I am far away from this world of show, mother  This is nothing but your blessing, Mother.  What should I write about you, "Soni "'s eyes are filled with ...

हे इंसान ! सुधर जाओ तुम

 है प्रकृति का कैसा कहर  ?   प्रलय है चारों पहर  |  क्या अमीरी - क्या गरीबी ?  ना कोई ऊँच और नीच  ,  हर तरफ मची है चीख  | हे इंसान ! संभल जाओ तुम  || प्रकृति के अनादर का यह परिणाम ,  अब तुम भुगत रहे हो हे इंसान ! ना कोई सुन रहा है तुम्हारी पुकार  ,   सब के सब हो गए लाचार  | हे इंसान  ! सुधर जाओ तुम  || प्रकृति से ना करो छेड़ -छाड़  ,  मानवता को ना करो शर्मसार  |  "सोनी " शीश नवाओ बारंबार  ,  संस्कृति  - सभ्यता से करो प्यार  | हे इंसान ! बदल जाओ तुम  || है कोई तुमसे भी ऊपर , बागडोर है जिनके बल पर | घृणा , दोष को त्यागो तुम  ,  हे इंसान ! अब भी समय है , जग जाओ तुम | हे इंसान ! सुधर जाओ तुम || What kind of havoc is nature?  Holocaust is around four o'clock.  What is rich - what is poverty?  No high and low,  Screaming everywhere.  Hey man  Be careful you ||  This result of disrespect of nature,  Now you are ...

हे अदृश्य शक्ति

हे अदृश्य शक्ति !  तुम अपना आभास कराओ | सब मिल करते तेरा आवाह्न ,  तुम अपनी करूणा तो लुटाओ |  थक चुके हैं , रुक चुके हैं  इस विनाश को तुम ही रोक पाओ | ये कैसा तबाही का मंजर , चारों ओर हाहाकार मच रहा है  | कैसा ये अदृश्य शत्रु (वायरस) ,  जिसे सिर्फ तुम ही समझ पाओ  | "सोनी " करती तेरा  आवाह्न  ,  तुम अपनी करुणा तो लुटाओ  |  हे अदृश्य शक्ति ! इस अदृश्य शत्रु से निजात दिलाओ  | हमारी भूलों को माफ करो तुम  ,  हमें अपना शरणागत बनाओ  | हमसब है तेरे संतान , अब और ना देरी लगाओ  | O invisible power!  You make yourself feel.  Everyone meet you,  Loot your compassion  Tired tired  Only you can stop this destruction.  What kind of destruction is this,  There is a commotion all around.  What kind of invisible enemy (virus),  Which only you can understand.  "Soni" does your call,  You should lavish your compassion.  O invisible power!  Get rid of this...